एक रास्ता हूँ मैं, हर रह-गुजर में हूँ
मंजिल हूँ मैं, और एक सफर में हूँ
मैं ही देवता हूँ मेरी इबादत का
जिसे पूजता हूँ, मैं उसी पत्थर में हूँ
हर जगह मौज़ूद मेरा ही वज़ूद है
लाला-ओ-गुहर में हूँ, कंकड़ में हूँ
जिस भी रूप में चाहे ढूँढ लो मुझको
ईसू में हूँ, महम्मद में हूँ, शंकर में हूँ
कैसी वीरानियों में यहाँ आबाद हूँ मैं
कोई देखे तो समझे कि एक घर में हूँ
दिल में शराब है, लबों पे है तिश्नगी
प्यासा हूँ, मगर बादा-ओ-सागर में हूँ
मेरा ही साथ है जो सुकून देता है मुझे
साया भी हूँ मैं और मैं ही शज़र में हूँ
गिरने और लड़ने में फर्क नहीं है कोई
मैं ठोकर में हूँ, मैं ही सिकन्दर में हूँ
हुस्न के नाम है हसीं ताजमहल
इश्क़ हूँ, मैं टूटे हुये संगमरमर में हूँ
आया हूँ यहाँ दो-चार दिन के लिये
एक मुसाफिर हूँ, तुम्हारे शहर में हूँ
हमराज़